गर मुकम्मल इश्क़ होता
गर मुकम्मल होता इश्क़ मेरा,
तो हम भी आशिक़ कमाल के होते,
जो होते वो चांद,
तो हम भी उनके "चांदनी के छांव" तले होते ।
हम भी होते बड़े ही ' वफादार ',
जो वो हमारे ' वफ़ा ' के "कद्रदान" गर होते।
पर ना हुआ मुकम्मल इश्क़ मेरा,
ना हम किसी काम के हुए,
हम देखते रह गए ख़्वाब बस,
वो किसी और के साथ हो गए ।
Miss Lipsa
01-Sep-2021 09:09 PM
Wow
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Ritesh Kumar Jaiswal
01-Sep-2021 10:00 PM
Thanks
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