Add To collaction

गर मुकम्मल इश्क़ होता

गर मुकम्मल होता इश्क़ मेरा,
तो हम भी आशिक़ कमाल के होते,
जो होते वो चांद,
तो हम भी उनके "चांदनी के छांव" तले होते ।
हम भी होते बड़े ही ' वफादार ',
जो वो हमारे ' वफ़ा ' के "कद्रदान" गर होते।

पर ना हुआ मुकम्मल इश्क़ मेरा,
ना हम किसी काम के हुए,
हम देखते रह गए ख़्वाब बस,
वो किसी और के साथ हो गए ।


   3
2 Comments

Miss Lipsa

01-Sep-2021 09:09 PM

Wow

Reply

Ritesh Kumar Jaiswal

01-Sep-2021 10:00 PM

Thanks

Reply